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Wednesday 6 July 2011

भगीरथजी मुनि के रेती पर उर्फ भगीरथ –गंगा नवकथा



गंगा को जमीन पर लाने वाले अजर-अमर महर्षि भगीरथजी स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।
मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।
छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।
पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।
खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।
नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।
भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।
नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे।
भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।
जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।
देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।
महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।
भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।
भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले –देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।
पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।
हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।
देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।
गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा।
जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)
देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।
जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।
भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।
कई बरसों तक साधना चली।
मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।
जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।
वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।
गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।
तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।

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