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Wednesday 6 July 2011

आज़ादी, मगर कैसी और किसके लिए?



प्रेमचंद के उपन्यास गबन (1931) में देवीदीन ने यह पूछा था, `साहब, सच बताओ, जब तुम सुराज का नाम लेते हो, उसका कौन-सा रूप तुम्हारी आंखों के सामने आता है? तुम भी बड़ी-बड़ी तलब लोगे, तुम भी अंगरेजों की तरह बंगलों में रहोगे, पहाड़ों की हवा खाओगे, अंगरेजी ठाट बनाये घूमोगे, इस सुराज से देश का क्या कल्याण होगा? तुम्हारी और तुम्हारे भाई-बंदों की जिंदगी भले आराम और ठाठ से गुजरे, पर देश का तो कोई भला न होगा… तुम दिन में पांच बेर खाना चाहते हो, और वह भी बढ़िया, पर गरीब किसान को एक जून सूखा चबेना भी नहीं मिलता. उसी का रक्त चूस कर तो सरकार तुम्हें हुद्दे देती है. तुम्हारा ध्यान कभी उनकी ओर जाता है? अभी तुम्हारा राज नहीं है, तब तो तुम भोग -विलास पर इतना मरते हो, जब तुम्हारा राज हो जायेगा, तब तो तुम गरीबों को पीस कर पी जाओगे.'
आजादी की 60वीं वर्षगांठ पर हमें यह जानना और विचार करना चाहिए कि भारत में गरीबों की संख्या कितनी है? ग्रामीण भारत की क्या दशा है? किसानों और मजदूरों का क्या हाल है? देश में आर्थिक विषमता बढ़ी है या घटी है? किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है? राज्य अपनी कल्याणकारी भूमिका से क्यों हटा है? नयी आर्थिक नीति (1991) का या भूमंडलीकरण और उदारीकरण का वास्तविक लाभ किसे प्राप्त हुआ है? राजनीति का कार्य क्या है? सामान्य जन और उसके जन प्रतिनिधि में कितना अंतर है? शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा सबको क्यों नहीं है? देश के 32000 स्कूलों में एक भी छात्र क्यों नहीं हैं? क्या भारतीय मध्य वर्ग समूचे भारत का पर्याय है? मीडिया कितनी सच्ची खबरें पाठकों को देता है? क्या भारत हत्या और आत्महत्या के बीच जी रहा है? भारत की आजादी से किसे लाभ प्राप्त हुआ है? क्या हमारे देश में सबको न्याय प्राप्त है? अपराधी और गुंडे जेल में क्यों नहीं हैं? भ्रष्टाचार मिटना चाहिए या नहीं और यह कैसे मिटेगा? भारतीय प्रतिभा का पलायन क्यों हो रहा है? रातोंरात अमीर कैसे बना जाता है? उत्पादक बड़ा है या उपभोक्ता? स्वतंत्र भारत में भारतीय जनता को किसने विभाजित किया? राजनीति में वंशवाद रहना चाहिए या मिटना चाहिए? चापलूसों और खुशामदियों से घिर कर क्या उचित कार्य किया जा सकता है? प्रश्न एक नहीं, हजारों हैं. यह कौन करेगा? इसका उत्तर कौन देगा?

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