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Wednesday 6 July 2011

अप्रतिम सौंदर्य का प्रतीक – नैनीताल




एक शहर जिसकी खूबसूरती ही उसकी पहचान है। बात हो रही है उत्तरांचल की। चारों ओर सुन्दर और घनी वादियों से घिरे इस शहर को देखकर ऐसा लगता है कि कुदरत ने इस जगह को बेपनाह हुस्न बख्शा है।
नैनीताल की खोज मिस्टर पी. बैरन ने १८४० में की थी। इस शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाती है यहां स्थित नैनी झील। जिसके कारण इसे सरोवर नगरी भी कहा जाता है। आंख का आकार लिये हुए इस झील के बारे में मान्यता यह है कि पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती राजा की पुत्री थी। उस जन्म में भगवान शिव से रुष्ट होकर वह सती हो गयी थी। तब उनकी आंख इस जगह पर गिरी थी। वैसे यह झील अपना रंग बदलती रहती है। कभी हरा तो कभी नीला। इस झील की गहराई भी बहुत अधिक है। पर्यटक झील का आनन्द नौकायन द्वारा करते हैं। झील के समीप ही नयना देवी मंदिर भी है जो कि बहुत पुराना है और मान्यता भी बहुत अधिक है। यहीं पर प्रसिद्ध नन्दा देवी का मेला लगता है।
नैनीताल का इतिहास पौराणिक कथाओं में कितना सच है, इस बात के पुख्ता सबूत नहीं परन्तु यह शहर अंग्रेजी हुकूमत का साक्षी है व उसके कई साक्ष्य भी यहां मौजूद हैं। अंग्रेजों का इस शहर से लगाव उनके द्वारा बनवाये गये भवनों और सड़कों से लगाया जा सकता है। यहां कि प्रसिद्ध माल रोड को अंग्रेजों ने निर्मित करवाया था। हिन्दुस्तानियों के प्रति उनकी घृणा और तिरस्कार यह सड़क आज भी बयां करती है। अंग्रेजों ने इस मार्ग को ऊपर-नीचे दो हिस्सों में बांटा था। ऊंची सड़क सिर्फ अंग्रेजों के लिये थी तथा निचले मार्ग से हिन्दुस्तानी जाते थे। भारतियों को ऊपरी सड़क पर चलने की सख्त मनाही थी। 
माल रोड के अलावा अंग्रेजों ने राजभवन का निर्माण करवाया था, जो आज भी सचमुच किसी राजा के महल के समान प्रतीत होता रहै। वर्तमान उत्तरांचल का उच्च न्यायालय जो कि नैनीताल में स्थित है, अंग्रेजों द्वारा निर्मित है। इसकी बनावट व खूबसूरत देखते ही बनती है।

आज़ादी, मगर कैसी और किसके लिए?



प्रेमचंद के उपन्यास गबन (1931) में देवीदीन ने यह पूछा था, `साहब, सच बताओ, जब तुम सुराज का नाम लेते हो, उसका कौन-सा रूप तुम्हारी आंखों के सामने आता है? तुम भी बड़ी-बड़ी तलब लोगे, तुम भी अंगरेजों की तरह बंगलों में रहोगे, पहाड़ों की हवा खाओगे, अंगरेजी ठाट बनाये घूमोगे, इस सुराज से देश का क्या कल्याण होगा? तुम्हारी और तुम्हारे भाई-बंदों की जिंदगी भले आराम और ठाठ से गुजरे, पर देश का तो कोई भला न होगा… तुम दिन में पांच बेर खाना चाहते हो, और वह भी बढ़िया, पर गरीब किसान को एक जून सूखा चबेना भी नहीं मिलता. उसी का रक्त चूस कर तो सरकार तुम्हें हुद्दे देती है. तुम्हारा ध्यान कभी उनकी ओर जाता है? अभी तुम्हारा राज नहीं है, तब तो तुम भोग -विलास पर इतना मरते हो, जब तुम्हारा राज हो जायेगा, तब तो तुम गरीबों को पीस कर पी जाओगे.'
आजादी की 60वीं वर्षगांठ पर हमें यह जानना और विचार करना चाहिए कि भारत में गरीबों की संख्या कितनी है? ग्रामीण भारत की क्या दशा है? किसानों और मजदूरों का क्या हाल है? देश में आर्थिक विषमता बढ़ी है या घटी है? किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है? राज्य अपनी कल्याणकारी भूमिका से क्यों हटा है? नयी आर्थिक नीति (1991) का या भूमंडलीकरण और उदारीकरण का वास्तविक लाभ किसे प्राप्त हुआ है? राजनीति का कार्य क्या है? सामान्य जन और उसके जन प्रतिनिधि में कितना अंतर है? शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा सबको क्यों नहीं है? देश के 32000 स्कूलों में एक भी छात्र क्यों नहीं हैं? क्या भारतीय मध्य वर्ग समूचे भारत का पर्याय है? मीडिया कितनी सच्ची खबरें पाठकों को देता है? क्या भारत हत्या और आत्महत्या के बीच जी रहा है? भारत की आजादी से किसे लाभ प्राप्त हुआ है? क्या हमारे देश में सबको न्याय प्राप्त है? अपराधी और गुंडे जेल में क्यों नहीं हैं? भ्रष्टाचार मिटना चाहिए या नहीं और यह कैसे मिटेगा? भारतीय प्रतिभा का पलायन क्यों हो रहा है? रातोंरात अमीर कैसे बना जाता है? उत्पादक बड़ा है या उपभोक्ता? स्वतंत्र भारत में भारतीय जनता को किसने विभाजित किया? राजनीति में वंशवाद रहना चाहिए या मिटना चाहिए? चापलूसों और खुशामदियों से घिर कर क्या उचित कार्य किया जा सकता है? प्रश्न एक नहीं, हजारों हैं. यह कौन करेगा? इसका उत्तर कौन देगा?

सिवाय चुनाव पर्व के, क्या है जो लोकतंत्र के होने का अहसास कराये?


वैश्वीकरण के बारे में आपकी क्या राय है और इसके प्रभावों का आकलन किस तरह करते हैं?
वैश्वीकरण देखने में एक बहुत ही मोहक व आकर्षक शब्द है. लेकिन वास्तविकता काफी खतरनाक व चिंताजनक है. सारी दुनिया का अमेरिकीकरण हो रहा है. 10 वर्ष पूर्व अमेरिका ने न्यू वर्ल्ड ऑर्डर यानी कि नयी विश्व व्यवस्था की बात कही थी, जो अब सच में बदलता दिख रहा है. पूर्वी यूरोप व रूस में समाजवाद के खात्मे के बाद अमेरिका पूंजीवाद के बल पर पूरी दुनिया में तो अपना प्रभाव जमाना ही चाहता है, उसकी विशेष नजर तीसरी दुनिया यानी कि एशिया, अफ्रिका और लैटिन अमेरिका के देशों पर है. तीसरी दुनिया के देशों में कच्चे माल का भंडार है, यहीं तैयार माल का सबसे आकर्षक बाजार भी है. सो, वैश्वीकरण की चोट सबसे ज्यादा तीसरी दुनिया के देशों पर ही पड़ेगी.
 

भगीरथजी मुनि के रेती पर उर्फ भगीरथ –गंगा नवकथा



गंगा को जमीन पर लाने वाले अजर-अमर महर्षि भगीरथजी स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।
मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।
छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।
पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।
खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।
नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।
भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।
नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे।
भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।
जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।
देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।
महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।
भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।
भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले –देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।
पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।
हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।
देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।
गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा।
जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)
देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।
जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।
भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।
कई बरसों तक साधना चली।
मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।
जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।
वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।
गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।
तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।

Wednesday 25 May 2011

ब्रेक के बाद –आपका भविष्य

ब्रेक के बाद –आपका भविष्य
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टी.वी. वाले भी गजब ढाते है
पहले तो ये ख़बरें दिखाते है
पेट्रोल के दाम पांच रूपये बढे
ढूध के दाम दो रूपये चढ़े
रिज़र्व बैंक ने ब्याज की दरें बढाई
इस हफ्ते फिर बढ़ी महंगाई
इस बार महंगा आम होगा
बंद के कारण सड़कों पर जाम होगा
फलों को केमिकल से ,बढ़ाते ,पकाते है
मिठाइयों में सिंथेटिक खोवा मिलाते है
इस बार गरमी का ,रिकार्ड टूट जायेगा
बिजली में कटौती होगी,पानी कम आएगा
झपट्टेमार खींच लेते गले से चेन है
बेकाबू कानून व्यवस्था ,कर रही बेचैन है
और इसके बाद,हमें ये सुनायेंगे
ब्रेक के बाद,
आपका आपका आज का दिन कैसा रहेगा,
पंडित जी बतलायेगे

Wednesday 11 May 2011

Samay ke sath television

प्रायः ये देखा गया है कि घरों में किसी न किसी विषय को लेकर          
चर्चाएँ होती रहती है. उन्ही में से एक टी.वी.program bhi है.विचार
करें जब आप पूरे परिवार के साथ टी.वी.देखने बैठते हैं तो,
कोई समाचार dekhna, तो कोई sas-बहु के program , aur कोई
कार्टून तो कोई cricket dekhna पसंद करता है, और वो bhi एक
ही समय पर. तो बेचारे रिमोट का हाल तो हाकी के उस गेद की 
तरह हो जाता होगा जो कभी इधर तो कभी उधर घूमता रहता है.
जरा विचार करें जब टी. वी. पर एक ही चैनेल हुआ करता था,
तो हम कृषि दर्शन सेलेकर रूकावट के लिए खेद है,तक एकसाथ 
देख लिया करते थे. लेकिन आज तो चैनलों की बाढ़ है फिर bhi कोई पूर्ण मनोरंजन नहीं ले पता है.यदि इसी तरह रहा तो एक   दिन  प्रत्येक गावं तथा प्रत्येक मोहल्ले का अपना खुद का चैनेल
होगा और संभव है कि इसी प्रतिस्पर्धा में जातिगत चैनेल जैसे 
कि,-पाठक चैनेल, मिश्रा  चैनेल, राय चैनेल,यादव चैनेल इत्यादि.
 इन चैनलों में आने वाले समाचार अपने-अपने मोहल्लों से 
सम्बंधित रहेंगे, जैसे कि ;-मिश्राजी  सस्पेंड हो गए, कल्लू धोबी
 ने शर्माजी की पैंट जला दी,सिंहजी के लड़के ने नई साईकिल 
खरीदी, व राय साहेब की दूसरी बीबी तिवारीजी के साथ भाग
 गयी इत्यादि.समाचार के बाद मिस पाठक कहेंगी आप देख 
रहे है पाठक टी.वी. अभी आप प्रियंका पाठक से समाचार सुन
 रहे थे, अब अंकुर पाठक से भजन सुनिए.भजन के बाद
 राजेश पाठक मौसम की जानकारी देंगे.जो bhi हो हसता -
रुलाता टी. वी. चैनेल कहीं न कही घर का सदस्य बन बैठा है,
जिसके बगैर हमारा परिवार चल नहीं सकता.  

koi dewanw kahata hai

कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को
बस बदल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ
तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है"

"मोहब्बत एक एहसासों की
पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था
कभी मीरा दीवानी थी
यहाँ सब लोग कहते है
मेरी आँखों में आंसू है
जो तू समझे तो मोती है
जो ना समझे तो पानी है"

"समंदर पीर के अंदर है
लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है
इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू
बना लेना मगर सुनले
जो मेरा हो नहीं पाया
वो तेरा हो नहीं सकता "

भर्मर कोई कुमुदनी पर
मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब
पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे
सब किस्सा मोहब्बत का
हम किस्से को हकीक़त में
बदल बैठे तो हंगामा